Author(s):
जागृति जगत, बंसो नूरुटी
Email(s):
jagritijagt25@gmail.com
Address:
जागृति जगत1 , डॉ. बंसो नूरुटी2
1 शोधार्थी, इतिहास अध्ययनशाला , पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर छत्तीसगढ़,
2 सहायक प्रध्यापक, इतिहास अध्ययनशाला, पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर छत्तीसगढ़
*Corresponding Author
Published In:
Book, जनजातीय भूगोल
Year of Publication:
May, 2025
Online since:
October 10, 2025
DOI:
10.52711/book.anv.tribalgeography-02
ABSTRACT:
जनजातीय समुदाय सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से एक ऐसा समुदाय है जो अपनी विशिष्ट परंपराओं रीति रिवाज भाषा और जीवन शैली के माध्यम से अपनी पहचान बनाए रखना है। यह समुदाय प्राय प्रकृति के निकट रहते हैं और अपने पर्यावरण के साथ गहरा सामंजस्य स्थापित करते हैं। जनजातीय समानता स्वत सामाजिक इकाइयां होती है जिनका नेतृत्व सामुदायिक नियमों और प्रथाओं द्वारा संचालित होता है भारत में जनजाति अपनी विविध सांस्कृतिक विरासत के लिए जानी जाती है जो कला संगीत नृत्य और हस्तशिल्प के रूप में अभिव्यक्त होती है यह समुदाय न केवल अपनी परंपराओं को सुरक्षित करते हैं बल्कि अपने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके आत्मनिर्भरता को भी बढ़ावा देते हैं जनजाति हस्तशिल्पी कला इन समुदायों की सृजनात्मक और प्रकृति के साथ उनके गहरे रिश्ते का प्रतीक है यह कलाना केवल उनके सांस्कृतिक पहचान को दर्शाती है बल्कि उनके आर्थिक और सामाजिक संरचना को भी मजबूती प्रदान करती है। प्रत्येक जनजाति अपने क्षेत्र में उपलब्ध कच्चे माल जैसे बस छिंद के पत्ते मिट्टी लकड़ी या धातु का उपयोग करके अद्वितीय हस्तशिल्प कला का निर्माण करते हैं। महासमुंद जिला में निवासरत पारधी जनजाति छिंद के पत्तों से चटाई झाड़ू अन्य सजावटी सामान निर्मित करती है, वही कमार जनजाति की महिलाएं बस से टोकरी सुपर बिंजना आदि घरेलू वस्तुओं का निर्माण कर जीवन यापन कर रहे हैं। इसके अलावा खैरवार जनजाति के लोगों द्वारा खैर वृक्ष के पत्तों से कत्था का निर्माण किया जा रहा है, जो जनजातियों की तकनीकी कुशलता और धैर्य को उजागर करता है कमार जनजाति की बांस की बुनाई में निपुणता और सौंदर्य बोध उनके हस्तशिल्प को विशिष्टता प्रदान करता है। जनजाति हस्तशिल्प कला का सिद्धांत एक महत्व इनकी पर्यावरणीय स्थिरता और सामुदायिक सहयोग में निहित है। यह कला पीढ़ियों से हस्तांतरित होती है, जिससे संस्कृत ज्ञान और कौशल का संरक्षण होता है। इसके अतिरिक्त यह आधुनिक बाजारों में भी अपनी जगह बना रही है, जिससे जनजातियों को आर्थिक अवसर प्राप्त हो रहे हैं। हस्तशिल्प कला केवल एक शिल्प नहीं बल्कि निरंतर का संगम है, जो जनजाति समुदायों की जीवन तथा रचनात्मकता को विश्व के समक्ष प्रस्तुत करता है।
Cite this article:
जागृति जगत, बंसो नूरुटी. जनजातीय पारंपरिक हस्तशिल्प कला: महासमुंद अंचल की सांस्कृतिक धरोहर का एक ऐतिहासिक अध्ययन.जनजातीय भूगोल.जनजातीय भूगोल.9-21DOI: https://doi.org/10.52711/book.anv.tribalgeography-02
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12. गोंदाबाई पारधी उम्र-70वर्ष निवासी बेलसोण्ढा, वि.ख. महासमुन्द, जिला-महासमुन्द दिनांक-09/12/2024 समय दोपहर 01.30 बजे
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18. कमारीन मीना, उम्र - 50 वर्ष व्यवसाय - बांसशिल्पी, निवास - कमारडेरा, जोरा तराई, दिनांक – 8/12/24 समय दोपहर 3 बजे
19. कमारीन दशमत, उम्र-77 वर्ष, व्यवसाय बांसशिल्पी निवासी - कमार डेरा, जोरातराई, दिनांक 8/12/24 समय 3:30 अपरान्ह
20. कमार झगरू, उम्र - 80 वर्ष, व्यवसाय- बांसशिल्पी निवासी - कमार डेरा, जोरातराई, दिनांक 8/12/24 समय 4:00 अपरान्ह