ABSTRACT:
भूमि किसी क्षेत्र का प्रमुख संसाधन है। एक निष्चित कार्य एवं उद्देष्य से भूमि का किसी भी रूप में उपयोग ही भूमि उपयोग है। मानव भूमि का उपयोग कई प्रकार से करता है। भूमि उपयोग प्रतिरूप भैतिक, आर्थिक और सामाजिक कारकों का से पारस्परिक क्रिया का परिणाम होता है। कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिए भूमि-उपयोग प्रतिरूप भौगोलिक अध्ययन का महत्वपूर्ण पक्ष है। दक्षिणी ऊपरी महानदी बेसिन का भूमि उपयोग के अंतर्गत कुल क्षेत्रफल 40,9,987 हेक्टेयर है। जिसमें ग्रामीण वनों का क्षेत्रफल 10,6,699 हेक्टेयर है जो पृष्ठ के कुल क्षेत्र का 26.03 प्रतिशत, कृषि के लिए अप्राप्त भूमि का 44,149 हेक्टेयर है, यह पृष्ठ भाग का कुल क्षेत्र का 10.77 प्रतिशत है । इसमें अकृषि कार्यों में प्रयुक्त भूमि 7.47 प्रतिशत तथा ऊसर एवं कृषि अयोग्य भूमि 3.30 प्रतिशत है। पड़ती के अतिरिक्त अन्य अकृषि भूमि का क्षेत्रफल 45,628 हेक्टेयर है, यह पृष्ठ भाग के कुल क्षेत्रफल का 11.13 प्रतिशत है। इसमें 9.14 प्रतिशत स्थायी चारागाह एवं अन्य घास के मैदान, झाडियों के झुण्ड का अभाव है तथा कृषि योग्य बेकार भूमि 1.99 प्रतिशत है। पड़ती भूमि का क्षेत्र 4.21 प्रतिशत है। इसमें चालू पड़ती 2.05 प्रतिशत एवं पुरानी पड़ती 2.16 प्रतिशत है। पड़ती भूमि का क्षेत्रफल 17,247 हेक्टेयर है, यह पृष्ठ के कुल क्षेत्रफल का 4.21 प्रतिशत तथा निरा बोया गया क्षेत्र 1,96,164 हेक्टेयर है। यह पृष्ठ भाग के कुल क्षेत्र का 47.86 प्रतिशत है। कांकेर-मैदान एवं पष्चिमी पहाड़ी प्रदेश में उपजाऊ मिट्टी एवं सिंचाई सुविधाओं के कारण निरा फसली क्षेत्र का विस्तार अधिक है। नगरी विकासखंड में सर्वाधिक 70.38 प्रतिशत क्षेत्र निरा फसली क्षेत्र के अंतर्गत आता है। जबकि गरियाबंद पठार एवं पूर्वी पहाड़ी प्रदेश में स्थित गरियाबंद, छुरा एवं मैनपुर विकासखंड में निरा फसली क्षेत्र पृष्ठ के कुल क्षेत्र का क्रमषः 28.26, 36..02 एवं 49.41 प्रतिशत है। इन विकासखंड में वन भूमि की अधिकता के कारण निरा फसली क्षेत्र कम है।
Cite this article:
टिके सिंह, आर. एस. केराम. दक्षिणी ऊपरी महानदी बेसिन में भूमि-उपयोग प्रतिरूप. जनजातीय भूगोल. जनजातीय भूगोल. 90-99.DOI: https://doi.org/10.52711/book.anv.tribalgeography-08
संदर्भ सूची
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